नमाज़ के बारे में जलालुद्दीन रूमी رحمتہ اللہ علیہ की हिकायत

नमाज़ और जलालुद्दीन रूमी

हज़रत मौलाना जलालुद्दीन रूमी رحمتہ اللہ علیہ अपनी किताब हिकायते रूमी में फरमाते हैं:
"एक वली अल्लाह इमामत के लिए खड़े हुए चंद हमअस्र साथी भी उनकी इक़्तिदा में नमाज़ अदा करने के लिए खड़े हो गए- जैसे ही वो हज़रात तकबीरों से वाबस्ता हुए क़ुर्बानी की तरह इस दुनियां ए फानी से बाहर निकल गए-"
उनके नज़दीक तकबीर के मानी ये थे कि:
"ऐ अल्लाह ! हम तेरे नाम पे क़ुर्बान हुए जैसे ज़िब्ह के वक़्त अल्लाहु अकबर पढ़ी जाती है वैसे ही उन्होंने अल्लाहु अकबर पढ़ी और अपने नफ्स का सर काट दिया और जिस्म शहवतों और हिर्स से आज़ाद हो गया- बिस्मिल्लाह के ज़रिए नमाज़ में बिस्मिल हो गया और इसके बाद उन्होंने क़यामत के दिन की तरह अल्लाह के हुज़ूर खड़े होकर हाथ बांध दिए-"

फिर अल्लाह ने पूछा:
"मेरे लिए क्या लाया है? मैंने तुझे एक उम्र अता की..रोज़ी दी..ताक़त दी वो तूने किस किस काम में लगाई? बीनाई...समाअत और दीगर हवास की दौलत तूने किस तरह इस्तेमाल की? हाथ पांव तुझे काम करने के लिए दिए तूने उनसे क्या काम लिया?"
क़ियाम की हालत में अल्लाह की तरफ से ऐसे बहुत से सवाल होते रहे चूंकि इंसान का दामन खाली था लिहाज़ा वो सवालों की ताब ना ला सका और फौरन रुकू में चला गया शर्म से रुकू में अल्लाह की अज़मत व बड़ाई बयान करने लगा-
अल्लाह का हुक्म होता है:
"रुकू से उठ और जवाब दे-"
वो सर उठाता है और क़ुव्वते गोयाई ना पाकर सज्दे में मुंह के बल गिर पड़ता है- फिर उसे सज्दे से उठने का हुक्म होता है वो फिर से उठता है और दोबारा सज्दे में गिर पड़ता है-

फिर वो अल्लाहु अकबर का नारा बुलंद करते हुए दोबारा उठ खड़ा होता है फिर उसके साथ वही अमल दोहराया जाता है- दूसरी रकअत में सज्दे के बाद खड़े होने की ताब ना पाकर वो क़अदे में बैठ जाता है-
इसमें अल्लाह फिर फरमाता है:
"मैंने तुझे बेशुमार नेमतें दीं तूने कैसे खर्च कीं मुझे हिसाब दे-"
चूंकि उसके पास कुछ भी नहीं होता इसलिए वो जवाब नहीं दे पाता- दाहिने जानिब सलाम कहता है और अम्बिया ए किराम علیہم السلام को मुखातिब करके अपनी मदद के लिए बुलाता है फिर बांयी जानिब सलाम कहता है और अपने अहले खानदान और दोस्तों को मदद के लिए बुलाता है- और फिर दोनों जानिब से मायूस होकर अपने रहीम व करीम आक़ा ﷺ के हुज़ूर दुआ के लिए हाथ बुलंद कर लेता है और आहो ज़ारी से अपने अल्लाह की खुशनूदी के हुसूल की कोशिश करता है..!!

حکایت نمبر 29 کتاب حکایاتِ رومی رحمتہ اللہ علیہ

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